शनिवार, 10 नवंबर 2018

दीवाली के दिये

दीवाली के दिये
रात को सजाये गए संवारे गये
भोर होते ही चौखट से उतारे गए
बाती जल चुकी
तेल भी चुक गया
ओने कोने औंधे पड़े
मुहं ताक रहे हैं
एक दूजे का
वजूद खत्म होने का अहसास
कचोटता है मन को
फिर सोचते हैं
शाश्वत है क्या ?
हम जले बुझे
रोशनी लुटाई
तम के गाल पर दिए चांटे
और बिसरा दिए गए
मिट तो सब कुछ जाता है
खुशियाँ भी और गम भी
फिर भी न जाने क्यूं
एक दूजे की ओर देख
पनीली आँखों में उदासी भरे
एक दूजे के गले मिल
बहुत कुछ सोचते रहे
दीवाली के दिये
कुमुद

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दीवाली के दिये रात को सजाये गए संवारे गये भोर होते ही चौखट से उतारे गए बाती जल चुकी तेल भी चुक गया ओने कोने औंधे पड़े मुहं ताक रहे हैं...