सुनो रावण !
सुनो रावण !
दशहरे में हम तुम्हारा पुतला फिर जलाएंगेकिन्तु जरा भी भयभीत न होना तुम
पुतला ही तो जलेगा न !
तुम तो अजर ,अमर ,अविनाशी होकर
दिलों में बसते हो हमारे
मुहं में राम और दिल में रावण
इस दुनिया का तौर है
समझो जिसे अपना
वो निकलता कुछ और है
तुम्हें बुराई का प्रतीक बता
खुद अच्छे बन जाते हैं
क्यूंकि दर्पण से कभी नजर नहीं मिलाते हैं
खैर छोड़ो ,तुम्हें "अपनी खैर मनाओ" नहीं कहूंगा
मुझे पता है ,तुम्हें कुछ नहीं होने वाला
हमें तो आदत है पुतले जलाने की
आये दिन यहाँ नेताओं के पुतले जलते हैं
ऐसे ही नेता खूब फूलते फलते हैं
ये पुतले ही शोहरत का मार्ग दिखाते हैं
जिनके पुतले जले ,वो शिखर पर जाते हैं
तुम भी तो शिखर पर जा रहे हो
फिर फिर अवतार ले ,मनुष्यों में आ रहे हो
हम तो तुम्हें जलाने का ढोंग करते हैं
तुम सचमुच में हमें जला रहे हो
पुतला फूंकने वालों को
कठपुतली बना रहे हो
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