शनिवार, 10 नवंबर 2018

दीवाली के दिये

दीवाली के दिये
रात को सजाये गए संवारे गये
भोर होते ही चौखट से उतारे गए
बाती जल चुकी
तेल भी चुक गया
ओने कोने औंधे पड़े
मुहं ताक रहे हैं
एक दूजे का
वजूद खत्म होने का अहसास
कचोटता है मन को
फिर सोचते हैं
शाश्वत है क्या ?
हम जले बुझे
रोशनी लुटाई
तम के गाल पर दिए चांटे
और बिसरा दिए गए
मिट तो सब कुछ जाता है
खुशियाँ भी और गम भी
फिर भी न जाने क्यूं
एक दूजे की ओर देख
पनीली आँखों में उदासी भरे
एक दूजे के गले मिल
बहुत कुछ सोचते रहे
दीवाली के दिये
कुमुद

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

सुनो रावण




                   

                  सुनो रावण ! 


                     सुनो रावण !
                    दशहरे में हम तुम्हारा पुतला फिर जलाएंगे
                    किन्तु जरा भी भयभीत न होना तुम
                    पुतला ही तो जलेगा न !
                    तुम तो अजर ,अमर ,अविनाशी  होकर
                    दिलों में बसते हो हमारे
                    मुहं में राम और दिल में रावण
                    इस दुनिया का तौर है
                    समझो जिसे अपना
                    वो निकलता कुछ और है
                    तुम्हें बुराई का प्रतीक बता
                    खुद अच्छे बन जाते हैं
                     क्यूंकि दर्पण से कभी नजर नहीं मिलाते हैं
                     खैर छोड़ो ,तुम्हें "अपनी खैर मनाओ" नहीं कहूंगा
                     मुझे पता है ,तुम्हें कुछ नहीं होने वाला
                    हमें तो आदत है पुतले जलाने की
                    आये दिन यहाँ नेताओं के पुतले जलते हैं
                    ऐसे ही नेता खूब फूलते फलते हैं
                    ये पुतले ही शोहरत का मार्ग दिखाते हैं
                     जिनके पुतले जले ,वो शिखर पर जाते हैं
                    तुम भी तो शिखर पर जा रहे हो
                    फिर फिर अवतार ले ,मनुष्यों में आ रहे हो
                    हम तो तुम्हें जलाने का ढोंग करते हैं
                    तुम सचमुच में हमें  जला रहे हो
                    पुतला फूंकने वालों को                   
                    कठपुतली बना रहे हो

बुधवार, 3 अक्टूबर 2018

मुक्तक "अपनेपन की बात"


अपनेपन की बात, फिर से आज वो करने लगा
आँख में न जाने क्यों, इक धुआँ सा भरने लगा
साथ मेरा छोड़कर, वो चल दिया तो क्या हुआ
कौन किसके साथ, अब उम्र भर चलने लगा

दीवाली के दिये

दीवाली के दिये रात को सजाये गए संवारे गये भोर होते ही चौखट से उतारे गए बाती जल चुकी तेल भी चुक गया ओने कोने औंधे पड़े मुहं ताक रहे हैं...